छत्तीसगढ़ में 27 हजार पदों पर होगी भर्तियां : कर्मा महोत्सव पर कांकेर पहुंचे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, मंगल भवन का किया लोकार्पण…

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रायपुर – छत्तीसगढ़ में जल्द ही अलग-अलग विभागों में खाली 27 हजार पदों पर भर्तियां होंगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि शीघ्र ही इसे शुरू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि, हाईकोर्ट के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित था। इसके कारण भर्तियों पर रोक लगी थी। अब सुप्रीम कोर्ट का स्टे आने के बाद भर्ती प्रक्रिया को शुरू किया जाएगा। कई लोगों को नियुक्ति पत्र भी बांटे जाने हैं। मुख्यमंत्री बघेल सोमवार को जिला स्तरीय कर्मा महोत्सव में शामिल होने कांकेर पहुंचे थे।

मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि, हम चाहते थे कि अनुसूचित जाति को 13, अनुसूचित जनजाति को 32, पिछड़े वर्ग को 27 और ईडब्ल्यूएस को चार प्रतिशत आरक्षण मिले। इसे लेकर विधानसभा में बिल भी पारित हुआ। हालांकि कोर्ट के आदेश के बाद बहुत सारी प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। आदिवासी नेता नंद कुमार साय के भाजपा छोड़कर कांग्रेस में प्रवेश करने पर कहा कि उनके आने से पार्टी को मजबूती मिलेगी। इससे पहले सीएम ने साहू समाज की के कार्यक्रम में 25 लाख की लागत से बने भवन का लोकार्पण किया।

सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण पर लगी हाईकोर्ट की रोक हटाई

छत्तीसगढ़ में 58 फीसदी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को फैसला दिया है। कोर्ट ने आरक्षण पर लगी रोक को हटा दिया है। इसके साथ ही 58 प्रतिशत आरक्षण के आधार पर भर्ती और प्रमोशन के निर्देश भी दिए हैं। अब प्रदेश में सरकारी नौकरियों में भर्ती, प्रमोशन और शिक्षण संस्थानों में प्रवेश का रास्ता साफ हो गया है। इससे पहले बिलासपुर हाईकोर्ट ने इसे असंवैधानिक बताते हुए 58 प्रतिशत आरक्षण को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने आबादी के अनुसार आरक्षण देने को भी गलत माना था।

आबादी के हिसाब से सरकार ने जारी किया था रोस्टर

छत्तीसगढ़ सरकार ने 2012 में 58 फीसदी आरक्षण को लेकर अधिसूचना जारी की थी। इसमें प्रदेश की आबादी के हिसाब से सरकार ने आरक्षण का रोस्टर जारी किया था। इसके तहत अनुसूचित जनजाति को 20 की जगह 32 फीसदी, अनुसूचित जाति को 16 की जगह 12 फीसदी और ओबीसी को 14 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया। इससे आरक्षण का दायरा संविधान द्वारा निर्धारित 50 फीसदी से ज्यादा हो गया। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जिसके बाद कोर्ट ने रोक लगा दी थी। इसके बाद प्रदेश में आरक्षण पूरी तरह से समाप्त हो गया था।

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